Sunday, 20 September 2015

Snake bite firstaid in hindi..

साँप के काटने

दोस्तो सबसे पहले साँपो के बारे मे एक महत्वपूर्ण बात आप ये जान लीजिये ! कि अपने देश भारत मे 550 किस्म के साँप है ! जैसे एक cobra है ,viper है ,karit है ! ऐसी 550 किस्म की साँपो की जातियाँ हैं ! इनमे से मुश्किल से 10 साँप है जो जहरीले है सिर्फ 10 ! बाकी सब non poisonous है! इसका मतलब ये हुआ 540 साँप ऐसे है जिनके काटने से आपको कुछ नहीं होगा !! बिलकुल चिंता मत करिए !

लेकिन साँप के काटने का डर इतना है (हाय साँप ने काट लिया ) और कि कई बार आदमी heart attack से मर जाता है !जहर से नहीं मरता cardiac arrest से मर जाता है ! तो डर इतना है मन मे ! तो ये डर निकलना चाहिए !

वो डर कैसे निकलेगा ????

जब आपको ये पता होगा कि 550 तरह के साँप है उनमे से सिर्फ 10 साँप जहरीले हैं ! जिनके काटने से कोई मरता है ! इनमे से जो सबसे जहरीला साँप है उसका नाम है !
russell viper ! उसके बाद है karit इसके बाद है viper और एक है cobra ! king cobra जिसको आप कहते है काला नाग !! ये 4 तो बहुत ही खतरनाक और जहरीले है इनमे से किसी ने काट लिया तो 99 % chances है कि death होगी !

लेकिन अगर आप थोड़ी होशियारी दिखाये तो आप रोगी को बचा सकते हैं
होशियारी क्या दिखनी है ???

आपने देखा होगा साँप जब भी काटता है तो उसके दो दाँत है जिनमे जहर है जो शरीर के मास के अंदर घुस जाते हैं ! और खून मे वो अपना जहर छोड़ देता है ! तो फिर ये जहर ऊपर की तरफ जाता है ! मान लीजिये हाथ पर साँप ने काट लिया तो फिर जहर दिल की तरफ जाएगा उसके बाद पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! ऐसे ही अगर पैर पर काट लिया तो फिर ऊपर की और heart तक जाएगा और फिर पूरे शरीर मे पहुंचेगा ! कहीं भी काटेगा तो दिल तक जाएगा ! और पूरे मे खून मे पूरे शरीर मे उसे पहुँचने मे 3 घंटे लगेंगे !

मतलब ये है कि रोगी 3 घंटे तक तो नहीं ही मरेगा ! जब पूरे दिमाग के एक एक हिस्से मे बाकी सब जगह पर जहर पहुँच जाएगा तभी उसकी death होगी otherwise नहीं होगी ! तो 3 घंटे का time है रोगी को बचाने का और उस तीन घंटे मे अगर आप कुछ कर ले तो बहुत अच्छा है !

क्या कर सकते हैं ?? ???

घर मे कोई पुराना इंजेक्शन (injection) हो तो उसे ले और आगे जहां सुई(needle) लगी होती है वहाँ से काटे ! सुई(needle) जिस पलास्टिक मे फिट होती है उस प्लास्टिक वाले हिस्से को काटे !! जैसे ही आप सुई के पीछे लगे पलास्टिक वाले हिस्से को काटेंगे तो वो injection एक सक्षम पाईप की तरह हो जाएगा ! बिलकुल वैसा ही जैसा होली के दिनो मे बच्चो की पिचकारी होती है !

उसके बाद आप रोगी के शरीर पर जहां साँप ने काटा है वो निशान ढूँढे ! बिलकुल आसानी से मिल जाएगा क्यूंकि जहां साँप काटता है वहाँ कुछ सूजन आ जाती है और दो निशान जिन पर हल्का खून लगा होता है आपको मिल जाएँगे ! अब आपको वो injection( जिसका सुई वाला हिस्सा आपने काट दिया है) लेना है और उन दो निशान मे से पहले एक निशान पर रख कर उसको खीचना है ! जैसी आप निशान पर injection रखेंगे वो निशान पर चिपक जाएगा तो उसमे vacuum crate हो जाएगा ! और आप खींचेगे तो खून उस injection मे भर जाएगा ! बिलकुल वैसे ही जैसे बच्चे पिचकारी से पानी भरते हैं ! तो आप इंजेक्शन से खींचते रहिए !और आप first time निकलेंगे तो देखेंगे कि उस खून का रंग हल्का blackish होगा या dark होगा तो समझ लीजिये उसमे जहर मिक्स हो गया है !

तो जब तक वो dark और blackish रंग blood निकलता रहे आप खिंचीये ! तो वो सारा निकल आएगा ! क्यूंकि साँप जो काटता है उसमे जहर ज्यादा नहीं होता है 0.5 मिलीग्राम के आस पास होता है क्यूंकि इससे ज्यादा उसके दाँतो मे रह ही नहीं सकता ! तो 0.5 ,0.6 मिलीग्राम है दो तीन बार मे आपने खीच लिया तो बाहर आ जाएगा ! और जैसे ही बाहर आएगा आप देखेंगे कि रोगी मे कुछ बदलाव आ रहा है थोड़ी consciousness (चेतना) आ जाएगी ! साँप काटने से व्यकित unconsciousness हो जाता है या semi consciousness हो जाता है और जहर को बाहर खींचने से चेतना आ जाती है ! consciousness आ गई तो वो मरेगा नहीं ! तो ये आप उसके लिए first aid (प्राथमिक सहायता) कर सकते हैं !

इसी injection को आप बीच से कट कर दीजिये बिलकुल बीच कट कर दीजिये 50% इधर 50% उधर ! तो आगे का जो छेद है उसका आकार और बढ़ जाएगा और खून और जल्दी से उसमे भरेगा !
तो ये आप रोगी के लिए first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए ये कर सकते हैं !
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दूसरा एक medicine आप चाहें तो हमेशा अपने घर मे रख सकते हैं बहुत सस्ती है homeopathy मे आती है ! उसका नाम है NAJA (N A J A ) ! homeopathy medicine है किसी भी homeopathy shop मे आपको मिल जाएगी ! और इसकी potency है 200 ! आप दुकान पर जाकर कहें NAJA 200 देदो ! तो दुकानदार आपको दे देगा ! ये 5 मिलीलीटर आप घर मे खरीद कर रख लीजिएगा 100 लोगो की जान इससे बच जाएगी ! और इसकी कीमत सिर्फ पाँच रुपए है ! इसकी बोतल भी आती है 100 मिलीग्राम की 70 से 80 रुपए की उससे आप कम से कम 10000 लोगो की जान बचा सकते हैं जिनको साँप ने काटा है !

और ये जो medicine है NAJA ये दुनिया के सबसे खतरनाक साँप का ही poison है जिसको कहते है क्रैक ! इस साँप का poison दुनिया मे सबसे खराब माना जाता है ! इसके बारे मे कहते है अगर इसने किसी को काटा तो उसे भगवान ही बचा सकता है ! medicine भी वहाँ काम नहीं करती उसी का ये poison है लेकिन delusion form मे है तो घबराने की कोई बात नहीं ! आयुर्वेद का सिद्धांत आप जानते है लोहा लोहे को काटता है तो जब जहर चला जाता है शरीर के अंदर तो दूसरे साँप का जहर ही काम आता है !

तो ये NAJA 200 आप घर मे रख लीजिये !अब देनी कैसे है रोगी को वो आप जान लीजिये !
1 बूंद उसकी जीभ पर रखे और 10 मिनट बाद फिर 1 बूंद रखे और फिर 10 मिनट बाद 1 बूंद रखे !! 3 बार डाल के छोड़ दीजिये !बस इतना काफी है !

और राजीव भाई video मे बताते है कि ये दवा रोगी की जिंदगी को हमेशा हमेशा के लिए बचा लेगी ! और साँप काटने के एलोपेथी मे जो injection है वो आम अस्तप्तालों मे नहीं मिल पाते ! डाक्टर आपको कहेगा इस अस्तपाताल मे ले जाओ उसमे ले जाओ आदि आदि !!

और जो ये एलोपेथी वालो के पास injection है इसकी कीमत 10 से 15 हजार रुपए है ! और अगर मिल जाएँ तो डाक्टर एक साथ 8 से -10 injection ठोक देता है ! कभी कभी 15 तक ठोक देता है मतलब लाख-डेड लाख तो आपका एक बार मे साफ !! और यहाँ सिर्फ 10 रुपए की medicine से आप उसकी जान बचा सकते हैं !

और राजीव भाई इस video मे बताते है कि injection जितना effective है मैं इस दवा(NAJA) की गारंटी लेता हूँ ये दवा एलोपेथी के injection से 100 गुना (times) ज्यादा effective है !

तो अंत आप याद रखिए घर मे किसी को साँप काटे और अगर दवा(NAJA) घर मे न हो ! फटाफट कहीं से injection लेकर first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए आप injection वाला उपाय शुरू करे ! और अगर दवा है तो फटाफट पहले दवा पिला दे और उधर से injection वाला उपचार भी करते रहे !
दवा injection वाले उपचार से ज्यादा जरूरी है !!
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तो ये जानकारी आप हमेशा याद रखे पता नहीं कब काम आ जाए हो सकता है आपके ही जीवन मे काम आ जाए ! या पड़ोसी के जीवन मे या किसी रिश्तेदार के काम आ जाए! तो first aid के लिए injection की सुई काटने वाला तरीका और ये NAJA 200 hoeopathy दवा ! 10 - 10 मिनट बाद 1 - 1 बूंद तीन बार
रोग[truncated by WhatsApp]

Thursday, 17 September 2015

Empathy

Empathy.

A female ‪#‎humpback‬ whale had become entangled in a spider web of crab traps and lines. She was weighted down by hundreds of pounds of traps that caused her to struggle to stay afloat. She also had hundreds of yards of line rope wrapped around her body, her tail, her torso, a line tugging in her mouth.

A fisherman spotted her just east of the ‪#‎Faralon‬ Islands (outside the Golden Gate) and radioed for help. Within a few hours, the rescue team arrived and determined that she was so badly off, the only way to save her was to dive in and untangle her…. a very dangerous proposition. One slap of the tail could kill a rescuer.

They worked for hours with curved knives and eventually freed her.

When she was free, the divers say she swam in what seemed like joyous circles. She then came back to each and every diver, one at a time, nudged them, and pushed gently, thanking them. Some said it was the most incredibly beautiful experience of their lives.

The guy who cut the rope out of her mouth says her eye was following him the whole time, and he will never be the same.

May you be so fortunate … To be surrounded by people who will help you get untangled from the things that are binding you.

And, may you always know the joy of giving and receiving gratitude.🎊🎊🎊🎊

A very Happy Ganeshotsav to all😊

Saturday, 6 June 2015

Pranayaam

नमस्कार मित्रांनो,

आज थोडेसे प्राणायामाबद्दल....आज श्वास आणि प्राणायामाबद्दल जास्तीत जास्त [परिपूर्ण नव्हे] माहिती देण्याचा प्रयत्न केला आहे. अवश्य अवश्य वाचा...कृपया कंटाळा करू नका...आवडले का ते अवश्य सांगा....केवळ "Like" मारून पुढे जाऊ नका. तुम्ही हा लेख तुमच्या संग्रही ठेवलात तरी चालेल.

मित्रांनो प्राण हाच जीवनाचा आधार आहे. प्राण हेच जीवन आहे. प्राण हेच सर्वस्व आहे...पंचप्राणांनी प्रिय व्यक्तीला ओवाळणारी भारतीय नारी हेच तर सांगत असते. प्राण या नटाबद्दल आपल्याला जेव्हढी माहिती असते त्याच्या एक सहस्रांश सुद्धा माहिती २ नाकपुड्यांतून वाहणारया या "प्राण" म्हणजेच श्वासाबद्दल नसते. प्राण म्हणजे प्र + आन = विशिष्ट गतीने पुढे आणणे/ नेणे. जसे प्रकाश म्हणजे प्र + काश = पुढे + पोकळीला आवरण करीत जाणे,प्रगती म्हणजे पुढे + गती अर्थात पुढे नेणारी गती होय.

प्राण या सृष्टीत "ओतप्रोत" [ओत= ओतान अर्थात इलेक्ट्रोनस तर प्रोत म्हणजे प्रोटोनस होय....याचाच अर्थ हे जग इलेक्ट्रोन आणि प्रोटोन्स यांनी बनलेले आहे हे आपल्या धोतर नेसणारया, जटा वाढवणारया आणि जंगलात राहणारया ऋषींना माहित होते तर.......!!!!!] भरून राहिला आहे. जेव्हा तो मानव प्राणी अथवा प्राणी यांच्या नाकपुडीतून संचार करतो तेव्हा त्याला श्वास असे म्हणतात.

हा श्वास एका वेळी डाव्या किंवा उजव्या नाकपुडीतून वाहत असतो. डाव्या नाकपुडीला चंद्र नाडी अथवा इडा असे म्हणतात. आणि उजव्या नाकपुडीला पिडा अथवा पिंगला असे म्हणतात. डाव्या नाकपुडीतून श्वास वाहात असताना तो कमी उष्ण असतो तर उजव्या नाकपुडीतून वाहताना श्वास तुलनेने थोडा जास्त उष्ण असतो. दिवसातील काही क्षण असे असतात की ज्या वेळेला श्वास दोन्ही नाकपुड्यानमधून वाहात असतो. या प्रकाराला "सुषुम्ना" नाडी असे म्हंटले जाते. सुषुम्ना नाडी अतिशय क्रूर समजली गेलेली असून या नाडीवर म्हणजे सुषुम्ना चालू असताना कोणतेही शुभ कार्य, मंगल कार्य अजिबात करू नये. अपयश येण्याची शक्यता जास्त असते. फक्त देवाची उपासना, ध्यान या वेळेस करावे. घराच्या बाहेर पडू नये. सर्वसाधारणपणे सकाळी ६, दुपारी १२, संध्याकाळी ६ आणि रात्री १२ वाजता सुषुम्ना नाडी विशेष करून चालू असते. म्हणूनच पूर्वी संध्याकाळी मुलांची दृष्ट काढताना "इडा पीडा टळो" असे म्हंटले जात असे. म्हणजे "इडा आणि पिडा" म्हणजे चंद्र आणि सूर्य नाकपुडी एकाच वेळेस चालू असणारी सुषुम्ना नाकपुडी जी या वेळेस चालू असते तिच्यामुळे होणारे त्रास दूर होवोत....शास्त्रीय भाषेत सांगायचे तर चंद्र नाकपुडी चालू असताना उजवा मेंदू आणि सूर्य नाकपुडी चालू असताना डावा मेंदू चालू असतो. आधुनिक विज्ञान सुद्धा हेच सांगते की एका वेळेस मेंदूचा एकच अर्धा भाग काम करत असतो असतो. मूर्ती शास्त्र - डाव्या सोंडेचा गणपती, उजव्या सोंडेचा गणपती यावरच आधारलेले आहे. सुषुम्ना नाडी चालू असताना दोन्ही मेंदू एकाच वेळेस काम करून एकमेकांशी जुळवणूक करून घेत असतात. दुसरया भाषेत सांगायचे तर मेंदूचा प्रत्येक एक भाग दुसर्या भागाच्या कार्यकालात शरीरात काय घडामोडी झाल्या आहेत हे समजून घेण्यात व्यस्त असतो. भारतीय अध्यात्म शास्त्रानुसार मन हे आत्म्यात विलीन झालेले असते. आणि आपले बाहेरच्या घडामोडींकडे थोडे दुर्लक्ष झालेले असते. त्यामुळे एखादी वाईट घटना घडू शकते......आता एखाद्या अडाणी मातेने इडा पिडा टळो असे म्हंटल्यावर "तथाकथित/सो called विज्ञानवादी हसणार नाहीत असा विश्वास आहे. ह्याच नाड्यांचे संयमान करण्यासाठी "रामदास स्वामी" आणि इतर योग्यांकडे "योगदंड किंवा कुबडी" असे. तसेच रामदास स्वामींच्या या कुबडी मध्ये गुप्ती सारखे शस्त्रही होते. ज्याचा उपयोग शत्रूशी वेळप्रसंगी लढण्यासाठी होत असे. जी नाकपुडी वाहणे चालू करायचे असते तिच्या उलट बाजूच्या काखेत हा दंड, आपला हात किंवा इतर एखादी वस्तू दाबून धरल्यास विरुद्ध बाजूची नाकपुडी वाहणे सुरु होते.]

चंद्र स्वरावर आकुंचन होते तर सुर्यस्वरावर प्रसरण होते. चंद्र स्वरावर अर्थात चंद्र/इडा नदीवर म्हणजेच डावी नाकपुडी चालू असताना शुभ कार्ये, पाणी पिणे वगैरे कामे करावी. तर उजवी नाकपुडी चालू असताना क्रूर कामे, जिथे शक्ती जास्त आवश्यक अशी कामे, भोजन वगैरे करावे. उन्हात जाताना उजवी नाकपुडी चालू असताना गेले तर त्रास कमी होतो आणि याच्या उलट डावी नाकपुडी चालू असताना उन्हात हिंडले तर त्रास जास्त होतो. जेवताना आणि जेवल्या नंतर उजवी नाकपुडी चालू असेल तर पचन चांगले होते. म्हणूनच दुपारी जेवल्यावर वामकुक्षी घ्यावी असे जे म्हंटले जाते ते याचसाठी. "वाम" म्हणजे डावी बाजू. कुक्षी म्हणजे कूस. कुशी. डाव्या कुशीवर झोपल्याने उजवी नाकपुडी अर्थात सुर्यस्वर चालू होतो. सूर्य स्वर चालू झाल्याने शरीरातील ग्रंथी, आतडी प्रसारित होतात. पोटात पचनासाठी आवश्यक असलेली उष्णता वाढते. अन्न पुढे ढकलले जाते. याच्या उलट चंद्र स्वरावर होऊन पचन बिघडते. मलबद्धता म्हणजेच बद्धकोष्ठ अथवा पोट साफ न होण्याचा त्रास होऊ लागतो. चंद्र नाकपुडी जास्त काल वाहिल्यास थंडी, सर्दी आणि अपचनाचे विकार, सूर्य नाकपुडी जास्त वाहिल्याने उष्णता, पित्त विकार, ताप, शरीर शिथिल होणे असे त्रास होतात. सुषुम्ना खरे तर दिवसातून अतिशय अल्प वेळ वाहते. पण ती जास्त काल वाहिल्यास अंतर्स्त्रावी ग्रंथींचे विकार, Cancer असे विकार होण्याची शक्यता बळावते.

या प्राणाचे ५ प्रमुख आणि ५ उपप्रकार आहेत.

१] प्राण- हृदयात रहातो. हाच आपला मुख्य प्राण होय. 
२] अपान- गुदस्थानी रहातो. अन्न पुढे ढकलून मालाचे उत्सर्जन करणे हे याचे काम. 
३] व्यान- सर्व शरीरभर व्यापून रहातो. सर्व शरीराचे संतुलन राखणे हे याचे काम.
४] उदान- कंठामध्ये रहातो. याच्याच योगाने आपण बोलू शकतो. 
५] समान- नाभी स्थानी रहातो. हा पचन घडवून आणतो.

प्राणांचे ५ उपप्रकार असे-
१] नाग- ढेकर आणतो.
२] कूर्म- नेत्रोन्मीलनकर्ता अर्थात डोळ्यांची उघडझाप करतो.
३] कृकल- शिंक आणतो. 
४] देवदत्त-जांभई आणणारा. 
५] धनंजय- सर्व शरीरभर व्यापून रहातो आणि मृत्युनंतर सुद्धा शरीर सोडत नाही.

वर उल्लेख केलेल्या सूर्य नाडी, चंद्र नाडी आणि सुषुम्ना नाडी व्यतिरिक्त अजून ७ नाड्या आहेत. नाडी स्ट्रीम किंवा प्रवाह असा अर्थ घ्या. इडा डावीकडे, पिंगला उजवीकडे, सुषुम्ना मध्यात, गांधारी डाव्या डोळ्या जवळ, हस्तिजिव्हा उजव्या डोळ्याजवळ, पूषा उजव्या कानाजवळ, यशस्विनी डाव्या कानाजवळ, अलम्बुषा मुखात, कुहू लिंगाच्या ठायी [जननेनद्रीया जवळ] आणि शंखिनी मूलस्थानी अर्थात गुदस्थानी रहाते.

श्वासोच्छ्वास करत असताना श्वास आत जाताना "स" कार करत म्हणजे "स्स्स" असा आवाज करत आत जातो तर बाहेर येताना "हम्म्म्म" असा "ह कार " युक्त आवाज करत श्वास बाहेर येतो. "ह" कार हे शिवाचे तर "स" कार हे शक्तीचे रूप रूप होय. हाच तो "सोहम्" जप होय. असा जप आपण दिवसभर २१६०० वेळा करतो. आपल्याला त्याचे अजिबात ज्ञान नसते. त्याकडे लक्ष देऊन साधना केली की मग तो "ईश्वर" प्राप्त होतो. या श्वास गतीवर जे नियंत्रण मिळवतात ते योगी "हंस" आणि "परमहंस" म्हणवले जातात. उदा. बंगालचे श्री. रामकृष्ण परमहंस वगैरे....

आता पुढे जाऊ या...

इडा, पिंगला आणि सुषुम्ना या तीन नाड्यानमधून आळीपाळीने आकाश तत्व [बीज मंत्र हं उच्चार हम्म], वायू तत्व [ बीज मंत्र यं उच्चार यम्म ], अग्नी तत्व [ बीज मंत्र रं उच्चार यम्म ], जल तत्व [ बीज मंत्र वं उच्चार वमम ] आणि भूमी तत्व अथवा पृथ्वी तत्व [ बीज मंत्र लं उच्चार लम्म ] ही तत्वे वाहात असतात. आणि यांच्या मिश्रणाने विविध ग्रह बनतात. म्हणजेच श्वासातून ग्रह वाहतात. उदा. उजव्या/सूर्य नाकपुडीतून अग्नी तत्व वाहिल्यास "मंगल" ग्रह ...वगैरे ....अर्थात ग्रह हे केवळ आकाशात नसून आपल्या नाकपुडीतूनही खेळत असतात ते असे.... म्हणजे तुम्ही सामान्य आहात का? हे वहन लक्षात ठेवण्यासाठी मी एक छोटीशी कविता करण्याचा प्रयत्न खूप वर्षांपूर्वी केला होता....

हीच ती कविता आणि ही उपयोगी आहे कोणते तत्व कोणत्या नाकपुडीतून वाहिल्यावर कोणता ग्रह वाहतो ते लक्षात ठेवायला....आपली पत्रिका किंवा कुंडली हेच दाखवत असते. पण तिचे "वाचन" करणे किती कठीण आहे हे आपल्या आता नक्कीच लक्षात आले असेल खरं की नाही? हाच ग्रहांचा खेळ आपल्या मानसिक स्थितीवर, आपल्या आर्थिक, सामाजिक, भावनिक, लैंगिक, ऐहिक, भौतिक, अध्यात्मिक स्थितीवर परिणाम करत असतो आणि त्याला खूप मोठ्या प्रमाणात कारणीभूत असतो खुद्द आपणच.....कारण चांगले वाईट कर्म तर सोडाच पण आपण नुसते कुशीवर वळलो, हातात वजन उचलले तरी सुद्धा हा श्वास प्रवाह डावी उजवीकडे बदलत असतो......

दक्षिणेत अग्नी भौम पृथ्वी सूर्य वाहतो, आप होय शनी आणि वायू राहू भासतो - दक्षरंध्र किंवा सूर्यनाडी 
उत्तरेत आप चंद्र पृथ्वी सूर्य चालतो, वायू होत गुरु आणि अग्नी शुक्र चमकतो- इडा/चंद्रनाडी
सुषुम्नेत भूमी बुध, आप चंद्र शुक्र तो, अग्नी रवी भौम, वात राहू शनी बनवतो..... 
आणि सुषुम्नेत नभी, गुरु ग्रह विलसतो, प्राणशक्तीचा प्रवाह, जीवनास फुलवतो.-सुषुम्ना नाडी.

भौम- मंगल/ नभी- आकाश तत्वात

नातून वायू ८ अंगुळे, अग्नी ४ अंगुळे, पृथ्वी १२ अंगुळे आणि आप तत्व १६ अंगुळे वाहाते. आकाश तत्व तिथल्या तिथेच मोकळे वाहाते. आकाश तत्वात सगळ्या तत्वांचे गुण मिश्रित अवस्थेत असतात. पृथ्वी तत्व रंगाने पिवळे, आकृतीने चतुष्कोनी, चवीने मधुर, नाकपुडीच्या मध्य भागातून वाहणारे आणि सर्व उपभोग प्राप्त करून देणारे असते. जलतत्व हे श्वेत वर्ण, अर्ध्या चंद्राच्या आकाराचे, तूरट, ओले, प्रवाही, नाकपुडीच्या खालच्या बाजूस चिकटून वाहणारे असते. हे अतिशय लाभप्रद असे तत्व आहे. अग्नीतत्व हे आरक्तवर्ण, त्रिकोणी, कडवट, देदीप्यमान आणि नाकाच्या वरच्या भागास स्पर्श करत वाहणारे असे असते. वायुतत्व हे रंगाने निळे, वर्तुळाकृती, आंबट अथवा आम्ल स्वादाचे, चपळ आणि नाकातून वाकडे वाहणारे असे असते. आकाश तत्व, वायू तत्व आणि अग्नी तत्व वाहत असताना कोणतीही शुभ कार्ये करू नयेत. भूमी तत्व आणि जल तत्व वाहत असताना सर्व मंगल कार्ये, सांसारिक कामे, मुलाखत वगैरे यशस्वी होतात. ही तत्वे ओळखणे कठीण नक्कीच आहे. त्यामुळे आपण जर उलट केले म्हणजे त्या त्या तत्वांच्या हस्तमुद्रा आणि बीज मंत्रांचा जप केला तर आपल्याला हवे असलेले तत्व आपण सुरु करू शकतो. वर बीज मंत्र दिले आहेत. मुद्रांबद्दल मी पुन्हा कधीतरी लिहीन.

मित्रांनो आता लक्षात आले का की आपला हा प्राण किंवा श्वासोच्छ्वास किती महत्वाचा आहे ते? आणि या श्वासोच्छ्वास क्रियेवर काही अंशी किंवा संपूर्ण नियंत्रण मिळवण्यासाठी प्राणायाम म्हणजे प्राणाचा अर्थात श्वासाचा "आयाम" म्हणजे व्यायाम केला जातो आणि त्या नवा "आयाम" म्हणजे नवे रूप, रंग, दिशा, शक्ती दिली जाते.

आता प्रत्यक्ष प्राणायामाकडे वळू या....

काही शब्दांचे अर्थ आधी पाहू...

पूरक- श्वास घेणे/ श्वास पुरवणे.
रेचक- श्वास सोडणे किंवा बाहेर टाकणे.
कुंभक- श्वास आत किंवा बाहेर रोखून धरणे. श्वास आत रोखून धरल्यास अंतर्कुम्भक आणि बाहेर रोखून धरल्यास त्याला बाह्य कुंभक असे म्हंटले जाते. अंतर्कुम्भक आणि बाह्यकुंभक एकाच प्राणायामात कधीही करू नयेत. मुळातच श्वास रोखून धरण्याचे प्राणायाम गुरुंच्या मार्गदर्शनाखालीच करावेत. 
अधो श्वसन- पोटाने/पोट फुगवून श्वास घेणे.
मध्य श्वसन- छातीने/फुफ्फुसांनी श्वास घेणे. 
आद्य शवसन - खांदे उचलून श्वास घेणे. 
आता प्राणायामाचे काही प्रकार बघू या....

१] अनुलोम विलोम- डाव्या नाकपुडीने श्वास आत घेऊन न थांबता पण तरीही अतिशय सावकाशपणे श्वास उजव्या नाकपुडीने बाहेर सोडावा. आणि केवळ क्षणभर थांबून परत याच उजव्या नाकपुडीने श्वास घेऊन डाव्या नाकपुडीने सोडावा. हे १ आवर्तन झाले. माणसाला आयुष्य हे वर्षात दिलेले नसून श्वासात मोजून दिलेले असते. भोजन, व्यायाम, निद्रा आणि मैथुन या चार प्रसंगी माणसाचे श्वास जास्त खर्ची पडतात म्हणजेच श्वासोच्छ्वास अतिशय जलद होतो. अतिशय आनंदी झाल्यावर [हर्षवायुने माणसे मृत्य पावतात], दु:खी राहिल्याने, क्रोधीत झाल्यानेही श्वास जलद चालतो. हेच ते प्रसंग ज्यामुळे माणसाचे आयुष्य क्षीण होते.... आणि अनुलोम विलोम या प्राणायामामुळे आपण वर पाहिल्याप्रमाणे इडा, पिंगला आणि सुषुम्ना या नाड्यांचे संयमन तर होतेच पण पंचतत्वांचे वहन सुद्धा सुधारल्याने माणसाच्या आयुष्यात आमुलाग्र बदल होतो. तसेच अतिशय सावकाश प्राणायाम केल्याने श्वास संथ वाहून आयुष्य वाढण्यास मदत होते. आणि श्वासाच्या गतीवर आणि फुफ्फुसांवर सुद्धा संयम येतो. छाती दृढ होते. मेंदूतील श्वसन केंद्रावर नियंत्रण येऊ लागते. अनुलोम विलोम प्राणायाम ६ महिने सलग केल्यावरच कुम्भकासहीत करायचे प्राणायाम करावेत असा नियम आहे.

२] भस्रिका- भस्रिका म्हणजे लोहाराचा भाता. ज्या प्रमाणे लोहार भाता फुलवून भरपूर प्राणवायू पुरवून आगीतील कोळसे, निखारे फुलवतो त्या प्रमाणे आपण आद्य श्वसन करून म्हणजे खांदे उचलून फुफ्फुसांना पुरेपूर मोकळी जागा करून देऊन भरपूर प्राणवायू आत घेणे आणि रक्तातील हिमोग्लोबिनचे निखारे पेटवून लालेलाल करणे म्हणजे भस्रिका... खांदे खाली नेताना श्वास आपोआप सुटला पाहिजे. श्वास सोडताना जोर लावू नये. या प्राणायामामुळे एकूणच तब्येत सुधारते. छाती दृढ होते. पचन सुधारते. आत्मविश्वास वाढतो. उत्साह वाढतो. आपापल्या शक्ती व कुवतीप्रमाणे २५ ते १०० आवर्तनांचा १ सेट आणि असे ३-४ सेट करावेत.

३] कपालभाती- काहीजण याचा उच्चार कपाल"भारती" असा करतात. जो अतिशय चुकीचा आहे. या प्राणायामामध्ये पोट हिसका देऊन, आत ओढून श्वास जोरात बाहेर सोडला जातो. श्वास आत मात्र आपोआप आला पाहिजे. जोर लावू नये. भस्रिकाच्या बरोबर उलट हा प्राणायाम आहे. याने मेंदूचे कार्य सुधारते. श्वास बाहेर जोरात टाकला गेल्याने शरीरातील वाईट पदार्थांचे निष्कासन झटकन होते. शरीराची उष्णता वाढते. फुफुसांना आराम मिळतो. हृदयाला आराम मिळतो. आपापल्या शक्ती व कुवतीप्रमाणे २५ ते १०० आवर्तनांचा १ सेट आणि असे ३-४ सेट करावेत.

४] उत्जायी- लहान मुले खेळताना जसा आवाज घशाने काढतात तसा आवाज काढत [ऊउम्म्म्म] श्वास आत घ्यावा. ३-४ वेळाच ही क्रिया करावी. कंठाचे काम सुधारते. थायरोइड ग्रंथींचे काम सुधारते.

५] उद्गीथ- भरपूर श्वास भरून घेऊन सावकाश उद्गीथ, प्रणव म्हणजेच ओमकाराचा "म" हा नाद घुमवत श्वास सोडावा.... [हा उच्चार करताना तो आपोआपच सुटतो. संपतो.]. मेंदूचे कार्य सुधारते.

६] भ्रामरी- श्वास सोडताना भुंग्या सारखा hmmmmmmmmmmmm असा नाद घुमवत श्वास सोडावा. मन शांत होते. मनाची लय लागते. जीवनाची लय सापडते. मेंदूचे काम सुधारते.

७] शितली- हा प्राणायाम विशेषत्वाने उन्हाळ्यात उपयुक्त आहे. शरीरातील उष्णता कमी होते. तहान कमी होते. जीभ बाहेर काढून जिभेला मध्ये पन्हाळी प्रमाणे खोलगट आकार देऊन तोंडाने श्वास घ्यावा आणि नाकाने सोडावा. ७-८ वेळा करावे.

८] सित्कारी- हा देखील शितली प्रमाणे उष्णता कमी करणारा प्राणायाम आहे. तोंड हसल्या सारखे करून, उघडून दातांमधून "स्स्स" असा आवाज करत श्वास आत घ्यावा. ७-८ वेळा करावे.

९] बाह्य प्राणायाम- भरपूर श्वास आत घेऊन श्वास सावकाश बाहेर सोडावा आणि श्वास बाहेर सोडलेला असताना आपल्या कुवती प्रमाणे [पण विशिष्ट आकडे मोजून] श्वास बाहेरच रोखून धरावा. जास्त ताण देऊ नये. हानिकारक ठरू शकते. या प्राणायामाने फुफुसांची शक्ती तर वाढतेच पण श्वास जास्त वेळ बाहेर राहिल्याने फुफुसांना एरव्ही जो आराम मिळत नाही तो मिळतो. मेंदूतील श्वास केंद्रावर ताबा येतो.

१०] अंतर्कुम्भक प्राणायाम- हाच खरा प्राणायाम होय. या प्राणायामात श्वास सावकाश आत घेऊन आत काही काल रोखून ठेवायचा असतो. नंतर सावकाश श्वास बाहेर सोडावा. हा जो कालावधी आहे त्याचे १:४:२ असे प्रमाण आहे. म्हणजे सामान्यत: जे जमू शकते ते प्रमाण म्हणजे श्वास आत घेताना १६ आकडे मोजत श्वास आत घेतला तर ६४ आकडे मोजत श्वास आत रोखून, रोधून धरावा. आणि ३२ आकडे मोजत श्वास सावकाश बाहेर सोडावा. योगी लोक किंवा प्राणायामात अग्रेसर होऊ इच्छिणार्यांनी १:४:२ हे प्रमाण १:६:२ नंतर १:८:२ असे १:३६:२ इथपर्यंत वाढवत न्यायचे असते. सर्वसाधारणपणे सामान्य माणसाने ३ वेळा हा प्राणायाम सुरवातीला [ प्रमाण १:४:२ हेच] ३-३ महिन्यांनी २-२ वेळा म्हणजे ३ महिन्यांनी ५ वेळा, ६ महिन्यांनी ७ वेळा असे प्रमाण वाढवत न्यावे. हा प्राणायाम गुरूंच्याच मार्गदर्शनाखाली करणे आवश्यक आहे. अन्यथा नुकसान अटळ आहे.

जप [ जप नेहमी मनात करावा, स्तोत्रे मोठ्याने म्हणावीत असा नियम आहे.] , ध्यान, पूजा करताना मन शांत होऊन श्वासोच्छ्वास आपोआप संथ, एका लयीत होऊ लागतो. आणि यात प्रगती झाल्यावर मनाचे चित्तात रुपांतर होऊन हळूहळू सारे संस्कार लोप पावत जातात. मन शांत होते. समाधानी, आनंदी बनते. मन आणि प्राण एकमेकांच्या वर परिणाम करत असतात श्वास जलद तर मनही उत्तेजित आणि मन दु:खी, उत्तेजित, क्रोधीत किंवा अति आनंदित असेल तर श्वासोच्छ्वास सुद्धा जलद होतो. जोराने स्तोत्रे म्हंटल्या मुळे भस्रिका, कपालभाती आपोआप होते.